माता सीता ने भोगा था वनवास का कष्ट, जानिए रामायण से जुड़े रोचक तथ्य
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी माता सीता की याद करने और उनके पूजन का दिन है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पत्नी के रूप में माता सीता के संबंध में वाल्मीकि रामायण में कई रोचक बातें बताई गई हैं। वाल्मिकी रामायण में सीताजी की उत्पत्ति, उनकी उम्र और उनकी चारित्रिक विशेषताओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। हालांकि ऋषि वाल्मिकी की इस कृति में श्रीराम-सीता के विवाह के कारण सीता स्वयंवर का उल्लेख नहीं है।
सीताजी ने अपने जीवन में अनेक कष्ट उठाए थे। अपने पति के साथ वे सालों तक वन में रहीं, बाद में रावण ने उनका अपहरण कर लिया। श्रीराम ने रावण का अंत कर माता सीता को मुक्त किया। वे अयोध्या आए और राजभोग किया लेकिन गर्भवती माता सीता को फिर जंगलों में जाना पड़ा। वन में ही उनके दो पुत्र लव-कुश हुए और अंतत: माता सीता फिर धरती में समा गईं। वाल्मिकी रामायण में दिए गए विवरण के अनुसार माता सीता को महज 18 साल की आयु में वनवास का कष्ट भोगना पड़ा था। वाल्मीकि रामायण में एक श्लोक है जिसमें स्वयं सीता को अपनी आयु की जानकारी देते हुए उद्धृत किया गया है। यह श्लोक है- मम भर्ता महातेजा वयसा पंचविंशक:। अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।। श्लोक का भावार्थ है कि माता सीता बता रहीं है कि वनवास के समय मेरे पति 25 साल के थे और वनगमन के साथ वे स्वयं 18 साल की थीं। में यह बात भी स्पष्ट होती है कि सीताजी प्रभु श्रीराम से सात साल छोटी थीं।
सीताजी के साथ एक और संयोग जुड़ा हुआ है। वे कई बार अग्रि में समाई थीं। पूर्व जन्म में वे एक तपस्विनी थीं जों रावण की दुष्टता के कारण अग्रि में समा गई थीं। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि रावण एक बार अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था तभी उसे वेदवती नामक सुंदर स्त्री दिखाई दी। तपस्यारत वेदवती को देख रावण मोहित हो उठा और उनके बाल पकड़कर अपने साथ ले जाने लगा। वेदवती क्रोधित हो उठीं और उन्होंने रावण को श्राप दिया कि एक नारी ही तेरी मौत का कारण बनेगी। रावण को शाप देकर वेदवती अग्नि में समा गई और दूसरे जन्म में माता सीता के रूप में जन्मीं।
जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।
खीर खाने से हुई भूख-प्यास शांत
वाल्मिकी रामायण में लिखा गया है कि कैसे देवराज इंद्र ने रावण की अशोक वाटिका जाकर माता सीता को खीर अर्पित की। इस वृतांत के अनुसार रावण सीताजी का अपहरण कर जिस दिन उन्हें अशोक वाटिका लाया उसी रात देवराज आए और वाटिका की रक्षा में लगे सभी राक्षसों को सुला दिया। बाद में उन्होंने माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके बाद माता सीता की भूख-प्यास शांत हो गइ थी।
स्वयंवर में नहीं टूटा था शिवधनुष
वाल्मीकि रामायण की सबसे खास बात यह है कि इसमें सीता स्वयंवर का उल्लेख ही नहीं है। वाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान राम ने स्वयंवर में शिवधनुष नहीं तोड़ा था बल्कि इसका प्रसंग अलग है। श्रीराम, लक्ष्मण को लेकर ऋषि विश्वामित्र मिथिला गए राजा जनक ने उन्हें शिवधनुष दिखाया। श्रीराम ने उस चमत्कारिक धनुष को यूं ही उठा लिया और वह टूट गया। तब राजा जनक ने अपनी इस प्रतिज्ञा के अनुसार कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे,
त्रेता युग में राम की जीवन संगनी बनीं माता सीता जनकनंदिनी के रूप में जानी जाती हैं, पर उनकी उत्पत्ति को लेकर कई वृत्तांत हैं। कहीं उन्हें लक्ष्मी के अवतार पद्या के रूप में बताया गया है, तो कहीं मंदोदरी की पुत्री के रूप में उनका उल्लेख मिलता है। यहां तक कि जिस रावण ने उनका हरण किया था, कुछ ग्रंथों में उन्हें उसी रावण की पुत्री बताया गया है। हालांकि इन अलग-अलग वृतांतों में एक तथ्य समान रूप से सामने आता है।
नाम से जुड़ा है यह रहस्य
ज्योतिषाचार्य पं. आसुतोष दीक्षित के अनुसार संस्कृत में हल को सीत और हल से बनी जुताई की रेखा को सीता कहते हैं। सीता जी हल जोतने के दौरान ही कन्या रूप में मिलीं, इसलिए उन्हें सीता कहा गया। सीताजी को यह नाम राजा जनक ने ही दिया था। इस संबंध में कथा यह है कि मिथिला को अकालमुक्त करवाने के लिए उनके गुरु ने राजा जनक और उनकी पत्नी सुनयना से खेत में जुताई करने को कहा। उनके परामर्शानुसार वे हल चला रहे थे तभी जमीन में से सोने का एक बक्सा निकला जिसमें एक अतिसुंदर बालिका मिली। राजा जनक उस बालिका को महल में ले गए तभी वर्षा होने लगी और अकाल खत्म हो गया। राजा जनक ने उस कन्या को पुत्री के रूप में अपनाकर उनका नाम सीता रखा।
मंदोदरी ने फिंकवा था भ्रूण
मानस मर्मज्ञ पं. प्रकाशदत्त शास्त्री के अनुसार अद्भुत रामायण में उल्लेख है कि सीताजी वास्तव में मंदोदरी की पुत्री थीं। इसमें लिखा गया है कि रावण ऋषि-मुनियों का वध कर उनका रक्त एक घड़े में एकत्र करता था। उसी समय ऋषि गृत्समद लक्ष्मी जैसी पुत्री की कामना से तपस्या कर रहे थे। वे दूर्बा घास का दूध निकाल एक घड़े में एकत्रित कर रहे थे। एक दिन रावण उनके आश्रम में पहुंचा और वह घड़ा उठा ले गया। उसने वह दूध ऋषियों के रक्त वाले घड़े में डाल दिया और मंदोदरी को यह कहकर छिपा कर रखने को कहा कि इसमें भयानक विष है। एक दिन मंदोदरी ने रावण के आचरण से परेशान होकर आत्महत्या करने की सोची और उस घड़े में रखा द्रव्य पी गई। इससे वे गर्भवती हो गई। उन्होंने घबराकर वह भ्रूण एक बक्से में रखवाकर फिंकवा दिया। संयोग से वह बक्सा मिथिला पहुंच गया और जनक को हल चलाते समय मिला।
रावण की पुत्री थीं सीता
ज्योतिषाचार्य पं. राजकुमार शर्मा के अनुसार देवी भागवत की एक कथा में उल्लेख मिलता है कि सीताजी रावण की ही पुत्री थीं। इसके अनुसार रावण का विवाह जब मंदोदरी से हुआ तब दानवराज मय ने रावण को एक राज बताया। उसने बताया कि मंदोदरी की जन्मपत्रिका के अनुसार उसकी पहली संतान के कारण कुल नाश होगा अत: जो पहली संतान हो उसे कहीं फेक देना या फिर मार देना। मंदोदरी की पहली संतान के रूप में पुत्री हुई तो उसे एक बाक्स में डाल मिथिला की भूमि में गड़वा दिया। वही बक्सा राजा जनक को हल चलाते समय मिला था।
लक्ष्मी की अवतार
आचार्य विद्वानों के अनुसार आनंद रामायण में माता सीता को लक्ष्मीजी का अंशावतार माना गया है। इसमें कहा गया है कि पद्याक्ष नामक राजा की पुत्री पद्या माता लक्ष्मी की अंशावतार थीं। पद्या के विवाह के लिए राजा ने स्वयंवर का आयोजन किया लेकिन कठिन शर्तें रखी। इससे कु्रद्ध राजाओं ने पद्याक्ष को मार डाला और उनका राज्य तहस-नहस कर दिया। पिता की हत्या से क्षुब्ध होकर पद्या ने अग्रिकुंड में प्रवेश कर लिया। एक दिन वे अग्रिकुंड से बाहर बैठी थीं तब रावण वहां से गुजरा। रावण ने पद्या को अपने साथ चलने को कहा तो पद्या ने अग्रिकुंड में प्रवेश कर लिया। रावण ने आग बुझाई तो पद्या तो नहीं मिलीं लेकिन वहां एक स्वर्ण संदूक मिला। जब रावण ने उस संदूक को मंदोदरी के सामने खोला तो उसमें कन्या पद्या बैठी थीं। रावण ने मंदोदरी को बताया कि इस कन्या के कारण इसके कुल का विनाश हो गया। इस पर मंदोदरी डर गई उसने सोचा कि जिस कन्या से उसका कुल का सर्वनाश हो गया उसकी वजह से हमारी दुनिया भी न उजड़ जाए। रावण के सैनिक उस संदूक को मिथिला में भूमि में गढ़ा आए जोकि राजा जनक को हल जोतते समय मिला था।
पराशक्ति हैं माता सीता
विद्वानों का मत है कि सीता जी परब्रम्ह परमेश्वर की ही पराशक्ति हैं, जो हर युग में अपनी एक भूमिका तय करके परमात्मा के सहयोग के लिए धरातल पर आती हैं। राधा की तरह सीता भी पराशक्ति थीं। वन गमन के दौरान जहां वे भगवान राम की छाया शक्ति रहीं वहीं दानवों के विनाश में उनकी वैराग्य और ब्रम्हशक्ति का तेज ही काम पर आया। यदि सीता अशोक वाटिका में वैराग्यणी के रूप में तप नहीं करतीं तो रावण को मार पाना असंभव था। पूर्व नियोजित भूमिका के तहत ही वे अन्याय रूपी रावण के वध का कारण बनने और राम की शक्ति बनने के लिए लंका पहुंची थीं। पुत्री, पत्नी, शक्ति और मां समेत हर रूप में सीता वंदनीय हैं।
फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी माता सीता की याद करने और उनके पूजन का दिन है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पत्नी के रूप में माता सीता के संबंध में वाल्मीकि रामायण में कई रोचक बातें बताई गई हैं। वाल्मिकी रामायण में सीताजी की उत्पत्ति, उनकी उम्र और उनकी चारित्रिक विशेषताओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। हालांकि ऋषि वाल्मिकी की इस कृति में श्रीराम-सीता के विवाह के कारण सीता स्वयंवर का उल्लेख नहीं है।
दशरथ कैकई संवाद, राम वनवास !!
RAMAYAN
सीताजी के साथ एक और संयोग जुड़ा हुआ है। वे कई बार अग्रि में समाई थीं। पूर्व जन्म में वे एक तपस्विनी थीं जों रावण की दुष्टता के कारण अग्रि में समा गई थीं। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि रावण एक बार अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था तभी उसे वेदवती नामक सुंदर स्त्री दिखाई दी। तपस्यारत वेदवती को देख रावण मोहित हो उठा और उनके बाल पकड़कर अपने साथ ले जाने लगा। वेदवती क्रोधित हो उठीं और उन्होंने रावण को श्राप दिया कि एक नारी ही तेरी मौत का कारण बनेगी। रावण को शाप देकर वेदवती अग्नि में समा गई और दूसरे जन्म में माता सीता के रूप में जन्मीं।
जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।
खीर खाने से हुई भूख-प्यास शांत
वाल्मिकी रामायण में लिखा गया है कि कैसे देवराज इंद्र ने रावण की अशोक वाटिका जाकर माता सीता को खीर अर्पित की। इस वृतांत के अनुसार रावण सीताजी का अपहरण कर जिस दिन उन्हें अशोक वाटिका लाया उसी रात देवराज आए और वाटिका की रक्षा में लगे सभी राक्षसों को सुला दिया। बाद में उन्होंने माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके बाद माता सीता की भूख-प्यास शांत हो गइ थी।
Sita Swayamvar !! सीता स्वयंवर !! Full Episode !! Ramanand Sagar's Ramayan in HD
स्वयंवर में नहीं टूटा था शिवधनुष
वाल्मीकि रामायण की सबसे खास बात यह है कि इसमें सीता स्वयंवर का उल्लेख ही नहीं है। वाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान राम ने स्वयंवर में शिवधनुष नहीं तोड़ा था बल्कि इसका प्रसंग अलग है। श्रीराम, लक्ष्मण को लेकर ऋषि विश्वामित्र मिथिला गए राजा जनक ने उन्हें शिवधनुष दिखाया। श्रीराम ने उस चमत्कारिक धनुष को यूं ही उठा लिया और वह टूट गया। तब राजा जनक ने अपनी इस प्रतिज्ञा के अनुसार कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे,
त्रेता युग में राम की जीवन संगनी बनीं माता सीता जनकनंदिनी के रूप में जानी जाती हैं, पर उनकी उत्पत्ति को लेकर कई वृत्तांत हैं। कहीं उन्हें लक्ष्मी के अवतार पद्या के रूप में बताया गया है, तो कहीं मंदोदरी की पुत्री के रूप में उनका उल्लेख मिलता है। यहां तक कि जिस रावण ने उनका हरण किया था, कुछ ग्रंथों में उन्हें उसी रावण की पुत्री बताया गया है। हालांकि इन अलग-अलग वृतांतों में एक तथ्य समान रूप से सामने आता है।
नाम से जुड़ा है यह रहस्य
ज्योतिषाचार्य पं. आसुतोष दीक्षित के अनुसार संस्कृत में हल को सीत और हल से बनी जुताई की रेखा को सीता कहते हैं। सीता जी हल जोतने के दौरान ही कन्या रूप में मिलीं, इसलिए उन्हें सीता कहा गया। सीताजी को यह नाम राजा जनक ने ही दिया था। इस संबंध में कथा यह है कि मिथिला को अकालमुक्त करवाने के लिए उनके गुरु ने राजा जनक और उनकी पत्नी सुनयना से खेत में जुताई करने को कहा। उनके परामर्शानुसार वे हल चला रहे थे तभी जमीन में से सोने का एक बक्सा निकला जिसमें एक अतिसुंदर बालिका मिली। राजा जनक उस बालिका को महल में ले गए तभी वर्षा होने लगी और अकाल खत्म हो गया। राजा जनक ने उस कन्या को पुत्री के रूप में अपनाकर उनका नाम सीता रखा।
मंदोदरी ने फिंकवा था भ्रूण
मानस मर्मज्ञ पं. प्रकाशदत्त शास्त्री के अनुसार अद्भुत रामायण में उल्लेख है कि सीताजी वास्तव में मंदोदरी की पुत्री थीं। इसमें लिखा गया है कि रावण ऋषि-मुनियों का वध कर उनका रक्त एक घड़े में एकत्र करता था। उसी समय ऋषि गृत्समद लक्ष्मी जैसी पुत्री की कामना से तपस्या कर रहे थे। वे दूर्बा घास का दूध निकाल एक घड़े में एकत्रित कर रहे थे। एक दिन रावण उनके आश्रम में पहुंचा और वह घड़ा उठा ले गया। उसने वह दूध ऋषियों के रक्त वाले घड़े में डाल दिया और मंदोदरी को यह कहकर छिपा कर रखने को कहा कि इसमें भयानक विष है। एक दिन मंदोदरी ने रावण के आचरण से परेशान होकर आत्महत्या करने की सोची और उस घड़े में रखा द्रव्य पी गई। इससे वे गर्भवती हो गई। उन्होंने घबराकर वह भ्रूण एक बक्से में रखवाकर फिंकवा दिया। संयोग से वह बक्सा मिथिला पहुंच गया और जनक को हल चलाते समय मिला।
रावण की पुत्री थी सीता ? Sita was Daughter of Ravan ?
Ravan ki beti sita
रावण की पुत्री थीं सीता
ज्योतिषाचार्य पं. राजकुमार शर्मा के अनुसार देवी भागवत की एक कथा में उल्लेख मिलता है कि सीताजी रावण की ही पुत्री थीं। इसके अनुसार रावण का विवाह जब मंदोदरी से हुआ तब दानवराज मय ने रावण को एक राज बताया। उसने बताया कि मंदोदरी की जन्मपत्रिका के अनुसार उसकी पहली संतान के कारण कुल नाश होगा अत: जो पहली संतान हो उसे कहीं फेक देना या फिर मार देना। मंदोदरी की पहली संतान के रूप में पुत्री हुई तो उसे एक बाक्स में डाल मिथिला की भूमि में गड़वा दिया। वही बक्सा राजा जनक को हल चलाते समय मिला था।
लक्ष्मी की अवतार
आचार्य विद्वानों के अनुसार आनंद रामायण में माता सीता को लक्ष्मीजी का अंशावतार माना गया है। इसमें कहा गया है कि पद्याक्ष नामक राजा की पुत्री पद्या माता लक्ष्मी की अंशावतार थीं। पद्या के विवाह के लिए राजा ने स्वयंवर का आयोजन किया लेकिन कठिन शर्तें रखी। इससे कु्रद्ध राजाओं ने पद्याक्ष को मार डाला और उनका राज्य तहस-नहस कर दिया। पिता की हत्या से क्षुब्ध होकर पद्या ने अग्रिकुंड में प्रवेश कर लिया। एक दिन वे अग्रिकुंड से बाहर बैठी थीं तब रावण वहां से गुजरा। रावण ने पद्या को अपने साथ चलने को कहा तो पद्या ने अग्रिकुंड में प्रवेश कर लिया। रावण ने आग बुझाई तो पद्या तो नहीं मिलीं लेकिन वहां एक स्वर्ण संदूक मिला। जब रावण ने उस संदूक को मंदोदरी के सामने खोला तो उसमें कन्या पद्या बैठी थीं। रावण ने मंदोदरी को बताया कि इस कन्या के कारण इसके कुल का विनाश हो गया। इस पर मंदोदरी डर गई उसने सोचा कि जिस कन्या से उसका कुल का सर्वनाश हो गया उसकी वजह से हमारी दुनिया भी न उजड़ जाए। रावण के सैनिक उस संदूक को मिथिला में भूमि में गढ़ा आए जोकि राजा जनक को हल जोतते समय मिला था।
पराशक्ति हैं माता सीता
विद्वानों का मत है कि सीता जी परब्रम्ह परमेश्वर की ही पराशक्ति हैं, जो हर युग में अपनी एक भूमिका तय करके परमात्मा के सहयोग के लिए धरातल पर आती हैं। राधा की तरह सीता भी पराशक्ति थीं। वन गमन के दौरान जहां वे भगवान राम की छाया शक्ति रहीं वहीं दानवों के विनाश में उनकी वैराग्य और ब्रम्हशक्ति का तेज ही काम पर आया। यदि सीता अशोक वाटिका में वैराग्यणी के रूप में तप नहीं करतीं तो रावण को मार पाना असंभव था। पूर्व नियोजित भूमिका के तहत ही वे अन्याय रूपी रावण के वध का कारण बनने और राम की शक्ति बनने के लिए लंका पहुंची थीं। पुत्री, पत्नी, शक्ति और मां समेत हर रूप में सीता वंदनीय हैं।